Varanasi ( Live Lokvani )
पहचान की एक अलग मिसाल रखने वाली नगरी काशी जो है सबसे निराली। कहा जाता है कि काशी एक ऐसी नगरी जिससे देवतागणों से लेकर हर एक महान व्यक्ति, देश के समस्त वीर पुरूष व हर एक बड़ा शख्य तक का नाता जुड़ता है। यह नगरी अपनी संस्कृति, परम्परा व अपने आध्यात्म से सभी को खुद से जोड़ती है और अपनी ओर आकर्षित करती है। काशी से ऐसा ही कुछ गहरा नाता नेताजी सुभाष चंद्र बोस का था। मौसी-मौसा के काशी रहने के कारण भी उनका अक्सर यहां आना होता था। इतना ही नहीं वो यहां से कुछ इस कदर जुड़ गए कि कई बार उनका काशी की गुप्त यात्रा पर आना हुआ था और काशी को लेकर के उनके जद्दोजहद में तमाम योजनाओं ने भी बना लिया था। कहीं ना कहीं उसी की देन है कि बीएचयू के भारत कला भवन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संलग्न कई स्मृतियों को संरक्षित किया गया है।
महात्मा गांधी को दिया राष्ट्रपिता का सम्बोधन:
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का सम्बोधन देने वाले नेताजी ही थें और उनका नारा था इत्तहाद, एकता, ऐतमाद, विश्वास, इतिमिदाद और बलिदान। एक पत्र में ऐसा जिक्र मिलता है कि नेताजी ने बापू से बंटवारे की बात ना मानने की बात कही थी।
महामना से भी था गहरा संबंध:
गांधी जी के अलावा उनका बीएचयू के महामना मदन मोहन मालवीय जी से भी संबंध था और उसका प्रतीक है कि भारत कला भवन में आज भी आजाद हिंद फौज का रुपया के साथ ही मालवीय जी को नेताजी द्वारा लिखा हुआ पत्र संग्रहित करके रखा गया है। कहा जाता है कि नेताजी दो बार बंगाली ड्योढ़ी आए थे और बेहद गोपनीय तरीके से दो दिन निवास किया और फिर चले गए। इसके अलावा वह काशी में कई बार गोपनीय तरीके से आए थे।
नेताजी का स्पप्नः बुनकरों का जीवन करना चाहते थे रौशन, देना चाहते थे बिजली:
जैसा कि पहले ही बताया कि नेताजी के दिमाग में काशी के लिए कई सारी योजनाएं थीं। उसमें से ही एक यह थी कि वह बनारस के बुनकरों को बिजली उपलब्ध कराना चाहते थे। उनका कहना था कि यदि बनारस के बुनकरों को बिजली उपलब्ध कराई जाए तो हम मैनचेस्टर को वस्त्र निर्यात कर सकते हैं।