Varanasi (Live Lokvani)
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के परीक्षा अभिलेखों में व्यापक पैमाने पर हेराफेरी व जालसाजी हुई हैं। बीच-बीच में टेबुलेशन रजिस्ट्रर (टीआर) के पन्ने गायब हैं। कटिंग के बावजूद अभिलेखों पर किसी भी जिम्मेदार अधिकारियों का हस्ताक्षर तक नहीं है। विशेष अनुसंधान दल (एसआइटी) ने इसके लिए वर्ष 2004 से 2014 के बीच विश्वविद्यालय तैनात सात कुलसचिव, उप कुलसचिव व सहायक कुलसचिवों को जिम्मेदार ठहराया है। 16 कर्मचारियों के साथ इन अधिकारियों के खिलाफ भी एसआइटी ने विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया है।
एसआइटी ने शासन को 99 पेज की जांच रिपोर्ट में नवंबर-2020 में ही सौंप दी थी। इसमें एसआइटी ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए शासन को सतर्कता विभाग (विजिलेंस) से जांच कराने की भी संस्तुति की थी। एसआइटी की रिपोर्ट पर शासन में विश्वविद्यालय के कुलसचिव से कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। विश्वविद्यालय की ओर कोई कार्रवाई न करने के कारण एसआइटी ने शासन की स्वीकृति के गत दिनों स्वयं लखनऊ में 16 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है।
परीक्षा अभिलेखों में हेराफेरी की जानकारी विश्वविद्यालय के अधिकारियों को भी थी। इसे देखते हुए विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद वर्ष 1985 से 2009 तक के परीक्षा अभिलेख संदिग्ध घोषित कर चुकी है। अंकपत्रों व प्रमाणपत्रों का अब सत्यापन कंप्यूटर में दर्ज रिकार्ड से मिलाकर किया जाता है।
वर्ष-2010 से टीआर पर अधिकारियों के हस्ताक्षर हो रहे थे। इसकी शुरूआत कराने के लिए तत्कालीन कुलपति प्रो. बिंदा प्रसाद मिश्र को काफी मशक्कत करनी पड़ी है। टीआर पर अधिकारियों के हस्ताक्षर होने के कारण वर्ष 2010 के बाद के परीक्षा अभिलेख कोई गड़बड़ी नहीं है।