Varanasi ( Live Lokvani )
मिशन शक्ति फेस 3 के अंतर्गत महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ एवं राष्ट्रीय सेवा योजना महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वर्षगांठ के अवसर पर ‘1857 के महासंग्राम में महिलाओं की भूमिका’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं निबंध प्रतियोगिता का आयोजन विश्वविद्यालय स्थित पर्यटन अध्ययन संस्थान के सभागार में किया गया।
कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने 1857 के महासंग्राम के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए अवगत कराया कि भारतीय अस्मिता को पुनर्जीवित करने में स्त्रियों राजनीतिज्ञों समाज सुधार को शिक्षाविदों और धर्मगुरुओं की मां की भूमिका रही है।कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए हिंदी विभाग प्रोफेसर अनुराग कुमार जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 1857 का समर केवल एक व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं था ,बल्कि ये आजादी के मतवालों का हुजूम था जिनमें मुख्य रुप से बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई ,मौलवी लियाकत अली, मंदसौर से फिरोज शाह, कानपुर से तात्या टोपे, राजस्थान से जय दयाल सिंह आदि बहुत सारे नाम इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हैं। आगे उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इतिहास को कलंकित करने वाला जलियांवाला बाग अंग्रेजों के डर का एक हिस्सा है क्योंकि अंग्रेज 1857 के संग्राम से इतना डर गए थे कि उन्हें अपनी सत्ता हिलती हुई प्रतीत हुई ।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका विशेष पर उन्होंने बल देते हुए कहा कि 1857 इतिहास में , दो प्रकार की स्त्रियों का विषय मिलता है एक वह जो 1857 के विद्रोह में सीधी शामिल हुई जबकि उनके पति की मृत्यु हो गई एक वह जो कहीं अदृश्य हो गई थी, ऐसे भी महिलाएं इतिहास में थी, या ऐसी सम्मानित स्त्रियां जिनके बच्चों को उत्तराधिकार नहीं मिला था। स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा देने वाली बेगम हजरत महल के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने संगठित रूप से अंग्रेजों को परास्त कियाl वहीं रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई के साथ मिलकर दुर्गा दल का निर्माण किया, जिसमें झलकारी बाई के साथ-साथ मंदर ,सुंदर बाई ,मुन्दरी बाई मोतीबाई आदि नाम भी इतिहास के पन्नों में सशक्त हस्ताक्षर के रूप में दर्ज हैं ।
साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया कि इतिहास के पन्नों में मुजफ्फरनगर से महाबीरी देवी, व अजीनन बाई नाम की तवायफ थी जो रूपए, पैसे ,खाद्यान्न इत्यादि से सैनिकों की मदद करती थी | इनके अलावा ऐसी बहुत सी स्त्रियां थी जिनमें आशा देवी, बख्तावरी देवी ,रहीमी, शोभना देवी आदि नाम थे जो इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हैं। इस अवसर पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में विश्वविद्यालय के विभिन्न संकाय एवं विभागों के विद्यार्थियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। प्रतियोगिता में प्रथम स्थान अनन्या सिंह, द्वितीय स्थान हिमशिखा भट्टाचार्य तथा तृतीय स्थान प्रज्ञा राय को प्राप्त हुआ।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं की सराहनीय उपस्थिति रही। साथ ही साथ समस्त अध्यापकों और महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ के सदस्यों यथा डॉ.विजय रंजन, डॉ.नीरज धनखड़ डॉ.आरती विश्वकर्मा, डॉ.ममता सिंह, डॉ किरन सिंह ,डॉ उर्जस्विता सिंह ,डॉ संगीता घोष ,डॉ सुनील कुमार विश्वकर्मा,डॉ अंकिता गुप्ता , डॉ सतीश कुशवाहा, डॉ कविता आर्या इत्यादि की भी उपस्थिति रही। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ नीरज धनकड़, अतिथियों का स्वागत संस्थान के निदेशक डॉ निशा सिंह ने किया व विषय प्रवर्तन डॉ के. के.सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ किरन सिंह ने किया।