तेरा फैसला नापाक़…..
आज समाज का रौबीला,
जांबाज क्यों हताश है..?
क्या अफसरों के,
तिरस्कार से निराश है..?
माना कि अनुशासन के,
अमले में मौन रहना है…
जुर्म के इंतेहा को क्या,
इस कदर सहना है..?
दोस्तों कदम इतना,
आत्मघाती ना उठाआ…
तस्वीरो में सिमटकर
परिजन को ना इतना सताओ…
तेरी आहट से माफ़ियाओं की,
रूह भी कांपती है,
इज्जतदारों की अस्मिता,
सायरन पर ही हाँफती है…
दर्द दिल का कुछ सांझा करों,
तनाव के गुलिस्ते को आधा करों,
अपनी मौत से मोहब्बत करना,
कहाँ का इन्साफ है..?
अनुशासन में शहादत देना,
फैसला खौफनाक़ है…
शपथ लिया है संविधान की,
करेंगे रक्षा देश के आन की,
मौत को गले लगाने का,
तेरा फैसला नापाक़ है…फैसला नापाक़ है….