रफ़्तार का कहर, मातम बरपा रहा है
रफ़्तार का कहर,
मातम बरपा रहा है…
वेग पकड़ माँ का लाडला,
कहा जा रहा है?
रफ़्तार के आग़ोश में,
मदहोश वत्स कुछ तो सोचो,
माता-पिता के लिए,
अपनी रफ़्तार को रोको…
जिंदगी भर की कमाई,
बाप ने तेरे शौक़ पर लगा दी,
लाल खुश रहे इसलिए,
माँ ने बाप से भी वैर ली…
तेरी जिद्द पर बाप ने एक,
शानदार फ़टफ़टिया दिला दी…
माँ के ज़ेहन में ख़्वाब कौंधता रहा,
परिवार तेरे लिए सोचता रहा,
पूत उचाईयों के शिखर पर जाएगा,
कामयाब होकर,
अपनी ज़िन्दगी बनाएगा…
बेटा ही माँ-बाप के,
बुढ़ापे की लाठी बनेगा,
इन सपनो को,
तेरी नादानी ने तोड़ दिया,
बेतहासा रफ़्तार ने जख़्म दे दिया…
ज़ख्म के इलाज में कर्जदार हो गए,
समाज के दागदार हो गए,
अंत बड़ा दुःखदायी रहा,
ना रफ़्तार रही और ना तू रहा,
तस्वीरों को देख आंसू बहा जा रहा है,
रफ़्तार का कहर,
मातम बरपा रहा है…
मातम बरपा रहा है।।